अब कितना चाहा था उसे…… कैसे बताएं…..
ख़ुद टूट गए हैं…. कुछ रिश्तों को जोड़ते जोड़ते..
नाराज़ हो….. चलो कोई बात नहीं…..
मनाने में तो हमनें भी…. PHD कर रक्खी है…
हमसफ़र बननें की चाहत थी हमें…..
उसे लगा जिस्म का भूखा हूँ मैं…!!
हाल भी कोई पूछनें वाला नहीं है…
ऐ मालिक… क्या यही दुनियाँ है तेरी बनाई हुई…!!
रातों को….. नींद नहीं आती हमें….
लोग कहतें हैं… इश्क़ हो गया है…!!
औऱ वो आख़िरी बात… जो तुमसे कह नहीं पाया…
मैं अब तुमसे मिलना नहीं चाहता…!!
अब लगता है… बात कुछ भी सही या गलत नहीं थी…
उनकी नज़र में वो सही थे… हमारी नज़र में हम…!!
सिर्फ गुलाब देने से अगर मोहब्बत हो जाती…
तो माली पुरे शहर का महबूब होता…!!
अपनीं तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं…
तुमनें किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी..!!
जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग
एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग…
किनारे से लौट आये आज नदी के…
पानीं में उनकी तस्वीर नज़र आ गयी थी हमें…!!
एक आईना था वो हमारी ख़ातिर…
वही आईना अब टूट गया है… !!
चलो राह में अब कोई मिलेगा तो नज़र फ़ेर लेंगे…
मोहब्बत का खेल खेलनें की क़ाबिलियत नही रही हममें…!!
वो कह रहा था… तू फ़रेबी होगा…
मैनें ख़ुद को समझाकर… बर्बाद किया है ख़ुद को…!!
कितना भी मजबूत हो दिल तोड ही देते हैं….
मन भर जाने पर सब छोड़ ही देते हैं…!!
मालूम है कि… तुम भूल जानें में माहिर हो बहोत…
मैं ताउम्र फ़िर भी… चाहूँगा तुम्हें…!!
भाव तो सोनें का भी बढ़ रहा है बाज़ार में…
वो तो हीरा हैं… नख़रे गर करते हैं… कोई बात नहीं…!!
मेरे पाँवों नें मना कर दिया उनके मोहल्ले में जानें से…
वो क्या है कि… इश्क़ तो है… पर बेशर्मी करना हमारे बस का नहीं…!!
जिस किसी दौर से भी… आप गुज़र रहे हों…
यक़ीन मानें… ये दौर भी… गुज़र जाएगा…!!
खिलाफ़ थोड़ी हैं…
बस… हमारे ख़यालों का उनके ख़यालों से…
मन नहीं मिलता… !!
कभी कभी की मुलाकात ही…अच्छी है…!
क़दर खो देता है..हर रोज़ का आना-जाना…!!
कितने दिलों को तोड़ती है कमबख्त फरवरी….
यूं ही नहीं किसी ने इसके दिन घटाए है..!!
उम्मीद अभी के लिए तो बस इतनीं है कि…
सलामत रहें वो… औऱ जिंदा रहें हम…!!
खाहिशों को बहुत हद तक दबा दिया था…
मग़र तुमसे जो मिले… इरादा बदलनें लगा है…!!
तेरी शिकायत किस से करे…
हर शख्स को तुझे अच्छा बताया है..!!
अजीब सबूत माँगा उसने मेरी मोहब्बत का,
कि मुझे भूल जाओ मुझे….तो मानूँ मोहब्बत है..!!
वो फुर्सत में करते हैं याद हमें..
और कहते हैं मुझे फ़िक्र है तुम्हारी…!!
मैं इंसान जिम्मेदार न होता… तो मर जाता…
मग़र इंसान ऐसा न होता… तो उन्हें समझता कैसे…!!
शिकायत न समझिए इसको…
उनका प्यार है ये… हमारा पागल पागल दिखना… !!
शर्त लगाना… अब छोड़ दिया है …
मालूम चल गया … की मुझे कुछ नहीं मालूम…!!
कभी कभी sorry बोलने से कोई फायदा नहीं होता…
जो बात दिल पर लग जाती है वो लग जाती है..!!
मैं ठीक हूं…बस ठिकाना बदल लिया है…
तुम्हारे दिल से निकल कर..
अपनी औकात में रहते हैं…!!
रोका नहीं किनारे नें… उस धार को एक भी बार अबकी…
वो ख़ुद ही… आधा चिर के बह चुका है… ऐसी ही एक… पिछली कोशिश में…!!
एक औऱ दिन गुज़र गया आज… यूँ ही इंतज़ार में…
मरीज़-ए-इश्क़ होनें से बेहतर है… आदमीं मर जाए..
ऐसा तो नहीं होना चाहिए … कि लोग हँसनें लगें हम पर…
फ़र्क़ पड़ा था कुछ दिन तक… पर अब वाक़ई फ़र्क़ नहीं पड़ता…!!
बहुत याद आते हो……”……तुम……”
दुआ करो मेरी याददाश्त चली जाये….!!
अच्छा सुनो… मरना जीना वाला ड्रामा तो हमसे बोला नहीं जाएगा…
पर सच में… बेहद … चाहते हैं तुम्हें…!!
गलतफहमी की गुंजाईश नहीं सच्ची मोहब्बत में
जहाँ किरदार हल्का हो कहानी डूब जाती है !
लगता है आज़कल आदत में कुछ ख़राबी आ गई है.
वरना हर रोज़ हम उनके लिए ही तड़पा करते थे…!!
साथियों का भी साथ छूट सा रहा है…
अब वाक़ई… बड़े हो गए हैं हम…!!
तुम महरम तो नहीं लगते… फिर भी…
चुभन देनें ही सही… साथ होते तो बेहतर होता…!!
घर के दरारों नें भी हम पर… हँसना शुरू कर दिया है…
मैनें अपना हाल ही कुछ ऐसा बना रक्खा है… बिना इश्क़ किए हुए ही…
आख़िरी ख़याल कुछ यूँ था कि…
काश वो कर लिया होता… जो करना चाहते थे उम्र भर…
जुबां पर वही फरियाद लेकर चलता है…
दिल मेरा अब भी…तेरी याद लेकर चलता है…!!
दिल की खामोशी से सांसो के ठहर जाने तक,
मुझे याद रहेगी वो अजनबी मेरे मर जाने तक।
जो मेरे दिल में है तेरे दिल में भी वही आरज़ू चाहिए
मोहब्बत में मुझे सिर्फ जिस्म नहीं तेरी रूह चाहिए.
छोड़ जाना मगर इक दफ़ा आ तो सही
तू बेवफ़ा है ये कह के आँख मिला तो सही.
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है,
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है।
ये चेहरे की मुसकुरहाट, मेरे इश्क को बयां करती है,
फिर क्यों ना गुमान हो, मुझे मेरी मोहब्बत पर।
ख़तरे में तुम्हारी रोज़ की इबादत पड़ जाएगी,
रोज़ मेरी शायरी पढ़ोगे तो मेरी आदत सी पड़ जाएगी।
चलिए… चलें मयख़ाने की ओर… आज…
लोगों नें चेताया तो था पहले ही…
पर अब समझ आया कि इश्क़ करके…ग़लती कर दी हमनें…!!
वो कमज़ोर धागा था…मैं मजबूत गाँठ…
औऱ मुझसे से टूट गया सबकुछ…!!
यकीन मत करिए… किसी की कहानीं पर…
आंसुओ में सच्चाई आज़कल… छिपानें लगे हैं लोग..
लड़ कर भी देखी है जंग… बहुत सारी हमनें…
कुछ लड़ाईयाँ हार जानें का अपना ही मज़ा होता है.
माना कि सब कुछ पा लुँगा मैं अपनी जिन्दगी में,
मगर वो तेरे मेहँदी लगे हाथ मेरे ना हो सकेंगे…
वाक़ई लौट आना चाहिए था… उन्हें ज़रा जल्दी ही…
पूरी उम्र ढल गई… इंतज़ार करते करते…!!
देखता तक नहीं मैं किसी और शख़्स को…
मैं हर रोज़ फ़िर भी… नई कहानियां बनाता हूँ उन्हें चिढानें के लिए…!!
इस क़दर इश्क़ हो जएगा… सोचा ही नहीं था…
पर एक दिन भी अब… तुम्हारे बग़ैर… अच्छा नहीं लगता…!!
कुछ भी कह दिया हो किसी नें फिर भी…
मोहब्बत लाज़वाब चीज़ है… कर के देखो…सुकून बेहिसाब आएगा…!!
मुसाफ़िर मैं ख़राब हूँ बेशक़… फ़िर भी…
साथ चलनें वालों का हाँथ छोड़नें की आदत नहीं मुझे…!!
मैं तो समझ रहा था ये मुमकिन नहीं कभी
तूने ब्लॉक करके वाकई हैरान कर दिया मुझे..
उन्होंने इश़्क नहीं किया कारोबार किया
जब भी फुर्सत में थे तभी तो प्यार किया..
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यों नहीं होता
मैं हर दिन जाग तो जाता हूँ ज़िंदा क्यों नहीं होता
लफ्जों में तो कुछ भी उतार सकते हो
ये बताओ दर्द में कितने दिन गुज़ार सकते हो.
ख्याल – ए – यार मे नींद का तसव्वुर कैसा,
आंख लगती ही नहीं ,आंख लगी है जबसे!
दिल पर हक जमाता है इश्क हद नही जानता,
क़ब्ज़ा ख्यालो पर करता है इश्क दायरा नही जानता।
तारीखों मैं तय नही होती इश्क की मौजूदगी,
बिखरना पड़ता है किसी को रूह से चाहने के लिए।
कभी फुर्सत में बैठ कर पढ़िये मेरे अल्फाजों को..!!
तुम पर ही शुरू और तुम पर ही खत्म होंगे….!!!!
तुमने सिर्फ इश्क सुना है,पढ़ा है, देखा है।
हमने इश्क किया है,जिया है, हारा है, सहा है!
कोई रस्म बाकी ना रही मोहब्बत निभाने के लिए.!
बताओं कितना ओर चाहूँ तुम्हें पाने के लिए..!!